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आचार्य चाणक्य की एक महत्त्वपूर्ण सीख-

सीखते रहना ही प्रगति का मार्ग है| सीख कही से भी मिल सकती है

आचार्य चाणक्य का नाम इतिहास में, उनकी अद्वितीय बुद्धिमानी और नीतियों के लिए अमर है। आज भी दुनिया, उनकी नितियों का पालन करती है, वे महान शिक्षाविद ,अर्थशास्त्री, राजनीतिक, रणनीतकार  और नीतिशास्त्री थे। एक महान विद्वान होने के बावजूद भी,  उनके जीवन में एक ऐसा पल आया, जब उन्हें, एक साधारण बूढ़ी महिला से ऐसी सीख मिली , जिस सीख ने चाणक्य के मिशन में एक नयी दिशा ला दी, और सफलता की ओर अग्रसर किया। 

आचार्य चाणक्य की एक महत्त्वपूर्ण सीख-

प्रारंभिक संघर्ष – बात उस समय की जब भारत के मगध प्रान्त में नन्द वंश का शासन था।  उस समय नन्द वंश के क्रूर शासक, धनानंद का साम्राज्य था , एक बार राजा धनानंद ने, चाणक्य को अपमानित करके, अपने दरबार से निकाला दिया था। तब उनके मन को अपार आघात लगा , काफी कष्ट हुआ , उनका मन क्रोध से भर गया था। वह अपमान की ज्वाला में जल रहे थे, तभी  उन्होंने यह प्रण लिया था, कि वे नंद साम्राज्य का अंत करेंगे और एक नए साम्राज्य की स्थापना करेंगे।

इतनी बड़ी प्रतिज्ञा को पूरा करना आसान नहीं था। लेकिन चाणक्य हठी थे वे जो ठान लेते थे, उसे वह पूरा करते थे | वह नंद साम्राज्य को अंत करने के अपने मिशन को पूरा करने में लग गए| चाणक्य ने छोटे-छोटे राजाओं और वीर युवाओं से मिलाकर उन्हें एकत्र करना शुरू किया। सेना बनाना प्रारंभ किया| वे जंगलों में भटकते, गांव-गांव जाकर लोगों को संगठित करते और धनानंद के खिलाफ लड़ाई लड़ते। लेकिन हर बार उनके मिशन में , कोई न कोई बाधा आ जाती। कभी सैनिकों की कमी होती, तो कभी सहयोगियों का विश्वास टूट जाता। जिससे वे चिंता ग्रस्त थे।

एक दिन, चाणक्य चिंता से ग्रसित, निराशा में डूबे जंगल में भटक रहे थे। वे अपने मिशन के बारे में विचार कर रहे थे । उनकी योजना बार-बार असफल हो रही थी, यह उनकी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर गलती कहां हो रही है, कमी कहाँ पर है ।

इसी विचार में खोये, वे जंगल में आगे बढ़ रहे थे, उन्हें एक गाँव दिखाई दिया, और गाँव के बहार एक कुटिया नजर आई , जिसमें से हल्का हल्का धुंवा निकल रहा था । भूख और थकान चाणक्य व्याकुल थे, उन्हें प्यास भी लगी थे, पानी पीने के उद्देश्य से उन्होंने कुटिया का दरवाजा खटखटाया। कुटिया का दरवाजा खुला, दरवाजा खोलने वाली एक बुजुर्ग महिला थी। चाणक्य ने महिला को प्रणाम किया।   यहाँ भी youtube

वह बुजुर्ग महिला, Chanakya को देखकर पहचान गयी, क्यूकि चाणक्य के मिशन की चर्चाये, लोगो में होती रहती थी, बुजुर्ग महिला ने चाणक्य से कहा “पुत्र, तुम थके हुए लगते हो। भीतर आओ,”  महिला के वचनों में दयालुता थी। 

चाणक्य ने सिर झुकाकर कुटिया में प्रवेश किया। महिला ने उन्हें बैठने के लिए, लकड़ी का एक छोटा सा पटा दिया और कहा इस पर बैठो , मै तुम्हे कुछ खाने के लिए देती हूँ , बुजुर्ग महिला ने खिचड़ी बनायीं हुई थी जो अभी चूल्हे पर ही रखी थी, महिला ने ताजी पकाई खिचड़ी में से, एक कटोरे में कुछ खिचडी निकालकर चाणक्य को दिया ।  पहला कदम

चाणक्य की सीख-

चाणक्य भूख से व्याकुल थे, भूख सहन नहीं हो रही थी । उन्होंने खिचड़ी खाने के लिए, खिचडी उठाई! जल्दबाजी में  उन्होंने बीच से खिचडी उठाई, जिससे उनकी उँगलियाँ जल गयी । खिचड़ी गरम होने के कारण उनकी उंगलियां लाल हो गईं। और चाणक्य चिल्लाने लगे।

यह देखकर बूढ़ी महिला मुस्करायी और कहा , “पुत्र, तुम बड़े नादान हो , तुम बड़े विद्वान लगते हो, लेकिन तुम्हे खिचड़ी खाने की समझ नहीं है।”

 यह सुनकर Chanakya अचंभित हो गए, आश्चर्य चकित भाव से, चाणक्य ने उस महिला की ओर देखा, और कहा माते मै आपका कथन समझ नहीं पाया । कृपया समझाएं।

महिला ने समझाते हुए कहा, पुत्र “खिचड़ी को हमेशा किनारों से खाना चाहिए, जहां से वह ठंडी होती है। बीच में हाथ डालोगे, तो जल ही जाओगे। तुम्हारी यही गलती तुम्हारे जीवन में भी हो रही है।” 

चाणक्य को यह सुनकर आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, “माँ, मैं तुम्हारी बात का अर्थ समझा नहीं।” 

महिला ने कहा, “पुत्र, धनानंद को परास्त करना चाहते हो , Chanakya ने कहा हाँ, तब महिला ने बताया कि तुम नंद साम्राज्य के मुख्य केंद्र पर, सीधे प्रहार करने की कोशिश कर रहे हो, जबकि तुम्हें पहले उसकी कमजोरियों को दूर करना चाहिए, यानी किनारों, पर काम करना चाहिए। जब किनारे कमजोर हो जाएंगे, तो बीच का हिस्सा अपने-आप गिर जाएगा।” 

महिला की सीख का प्रभाव   महिला कीइस बात को सुनकर, चाणक्य गहन विचार में पड़ गए। उन्होंने महसूस किया कि बूढ़ी महिला ने अनजाने में, उन्हें नंद साम्राज्य को, पराजित करने की कुंजी दे दी । 

उन्होंने महिला को प्रणाम किया और कहा, “माँ, तुमने आज मुझे जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा दी है। मैं इस पर अमल करूँगा और अपना लक्ष्य जरूर पूरा करूंगा।” 

रणनीति में बदलाव  बूढ़ी महिला की सीख के बाद चाणक्य ने पूरी तरह से अपनी रणनीति बदल दी। अब उन्होंने सीधे नंद साम्राज्य पर हमला करने के बजाय, उसके सीमावर्ती इलाकों को निशाना बनाना शुरू किया। वे छोटे-छोटे राजाओं से मिलते, उन्हें समझाकर धनानंद के खिलाफ करके अपने पक्ष में कर लिया। 

चाणक्य ने स्थानीय समस्याओं का हल निकालकर जनता का विश्वास जीता। उन्होंने किसानों, व्यापारियों, और सैनिकों को यह विश्वास दिलाया कि धनानंद का शासन, उनके जीवन को केवल कष्ट दे रहा है। धीरे-धीरे, नंद साम्राज्य की सीमाएं कमजोर होने लगीं।

चाणक्य को चंद्रगुप्त की सहायता-

चाणक्य के मिशन को पूरा करने के लिए उन्हें एक योग्य और साहसी युवा चंद्रगुप्त मिला, जिसने उनकी योजना को साकार करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। चन्द्रगुप्त ने चाणक्य के निर्देशन में छोटे छोटे युद्ध करना प्रारंभ किया और सीमावर्ती क्षेत्रों में नंद साम्राज्य की सेना को पराजित करना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने पूरे साम्राज्य को घेर लिया। 

अंततः, चाणक्य और चंद्रगुप्त ने मिलकर मगध पर विजय प्राप्त की , धनानंद को पराजित किया और नंद वंश का अंत कर दिया। एक नए साम्राज्य की स्थापना हुई, जिस साम्राज्य का राजा चंद्रगुप्त मौर्य को घोषित किया गया और चाणक्य स्वम् महामंत्री बने गये । 

चाणक्य का आभार

जब चाणक्य अपने लक्ष्य में सफल हुए, तो उन्हें उस बूढ़ी महिला की याद आई, जिसने उन्हें जीवन की सबसे बड़ी सीख दी थी। वे वापस उसी गांव में गए,  वह महिला वहां पर नहीं थी , चाणक्य ने उनका पता करने का प्रयास किया लेकिन महिला का पता नहीं चला। 

उन्होंने गांववालों से कहा, “अगर वह महिला यहां आती है, तो उनसे मेरा धन्यवाद कहना। मैं उसकी शिक्षा को कभी नहीं भूल सकता।” 

निष्कर्ष  यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में बड़ी समस्याओं का हल, सीधे आक्रमण करने में नहीं, बल्कि धैर्य और सही रणनीति अपनाने में है। अक्सर बड़ी बड़ी समस्याओं को किनारों से हल करना पड़ता है, जैसे खिचड़ी को किनारों से खाना चाहिए। 

चाणक्य की सफलता का आधार केवल उनकी बुद्धिमानी और नीतियां नहीं थीं, बल्कि उस साधारण बूढ़ी महिला की साधारण सीख थी, जिसने उन्हें सही दिशा दिखाई। 

इस कहानी का संदेश है कि कभी भी किसी छोटे या साधारण व्यक्ति की सलाह को अनदेखा नहीं करना चाहिए। हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अनुभव और सीखाने की संभावना छिपी होती है।

दोस्तों आप इस वाक्य “सीखते रहना ही प्रगति का मार्ग है, सीख कही से भी मिल सकती है” का अर्थ समझ गए होंगे। उम्मीद करता हूँ आपने कहानी का आनंद लिया होगा और महत्त्वपूर्ण सीख भी सीख ली होगी।

पढ़ने के लिए धन्यवाद

Hemraj Maurya

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