Know 10 facts about Dwarkadheesh Temple

द्वारका गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर बसा हुआ है। यहीं पर द्वारकाधीश मंदिर है

श्री द्वारकाधीश मंदिर, जिसे द्वारकापूजक मंदिर, जगत मंदिर और निज मंदिर का नाम से जाना जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु के 8वे अवतार भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है 

द्वारका का निर्माण श्रीकृष्ण द्वारा भूमि के एक टुकड़े पर किया गया था जो समुद्र से प्राप्त हुआ था। कहा जाता है कि इस नगर में कई द्वार बनाए गए थे जिनका नाम द्वारका रखा गया था। 

द्वारका का निर्माण श्रीकृष्ण द्वारा भूमि के एक टुकड़े पर किया गया था जो समुद्र से प्राप्त हुआ था। कहा जाता है कि इस नगर में कई द्वार बनाए गए थे जिनका नाम द्वारका रखा गया था।

मूल मंदिर का निर्माण श्री कृष्ण के निवास स्थान पर उनके पुत्र वज्रनाभ द्वारा किया गया था। मंदिर का निर्माण शिला पत्थर से किया गया है।

इस मंदिर का निर्माण चालुक्य शैली में 15-16वीं शताब्दी के बीच हुआ था। मंदिर का शिखर करीब 78.3 मीटर ऊंचा है।

द्वारकाधीश मंदिर में भगवान द्वारकाधीश जी की श्यामवर्ण की मूर्ति चाँदी के सिंहासन पर विरजमान हैं।

द्वारकाधीश मंदिर के ऊपर फहराए गए झंडे में सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक हैं। ऐसा माना जाता है कि जब तक सूर्य और चंद्रमा रहेंगे तब तक द्वारकाधीश का नाम रहेगा।

ध्वज को दिन में 5 बार बदला जाता है। इस झंडे की खास बात यह है कि हवा की दिशा जो भी हो, यह झंडा हमेशा पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर ही लहराता रहता है।

द्वारकाधीश मंदिर का ध्वज 52 गज का होता है। सिद्धांत के अनुसार 12 राशियाँ, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएँ, सूर्य, चन्द्र, और श्री द्वारका को मिलाकर योग 52 हो जाता हैं इसलिए यह ध्वज 52 गज का है  

मंदिर में दो प्रवेश द्वार हैं। मुख्य द्वार (उत्तर प्रवेश द्वार) को "मोक्ष द्वार" कहा जाता है। दक्षिण प्रवेश द्वार को "स्वर्ग द्वार" कहा जाता है। इस दरवाजे के बाहर 56 सीढ़ियाँ हैं जो प्रकाश नदी की ओर जाती हैं 

द्वारकाधीश जाने का मुख्य समुद्री मार्ग है और नाव से जाया जाता था लेकिन 25 फरवरी 2024 को सुदर्शन सेतु का उदघाटन हो जाने से अब थल मार्ग से भी यात्रा की जाने लगी है