The dilemma of love. इश्क़ की कशमकश: सरिता और प्रेम की अधूरी मोहब्बत

The dilemma of love इश्क़ की कशमकश एक ऐसी लड़की की प्रेम कहानी है जो विना मर्जी के माँ के साथ safar करती है और एक love story in the way बन जाती है जाने क्या होता है सरिता और प्रेम की इश्क़ की कशमकश school love story में

The dilemma of love सरिता और प्रेम की अधूरी मोहब्बत

गर्मियों की छुट्टियाँ थीं। सरिता अपनी नानी के गाँव जाने को तैयार थी। उसका बैग पैक हो चुका था, और वह रेलवे स्टेशन पर अपनी माँ के साथ खड़ी थी। गाँव जाने का उसका मन बिल्कुल नहीं था। “माँ, मुझे यहीं रहने दो ना! नानी के गाँव में तो कोई दोस्त भी नहीं है, कोई मॉल नहीं, बस खेत और पुरानी यादें। ” सरिता ने ज़िद की। 

“बेटा, तुम्हारी नानी तुम्हें बहुत मिस कर रही हैं। बस दो हफ़्ते की बात है,” माँ ने समझाया। 

सरिता ने चुपचाप सिर हिलाया और ट्रेन में बैठ गई। खिड़की से बाहर झाँकते हुए उसने देखा कि स्टेशन पर एक लड़का अपने सामान के साथ उसी डिब्बे की तरफ़ आ रहा था। लंबा, गेहुँआ रंग, और आँखों में एक अजीब सी चमक। वह सरिता के सामने वाली सीट पर बैठ गया। 

ट्रेन चल पड़ी। सरिता ने अपनी किताब निकाली—रस्किन बॉन्ड की ‘दोस्ती’। वह पढ़ने में डूब गई, लेकिन तभी उसके सामने वाली सीट पर बैठा वह लड़का उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। 

अचानक उस लड़के ने पूछा, “यह कौन सी किताब है?” 

सरिता ने झिझकते हुए किताब का नाम बताया। 

“वाह! मुझे भी रस्किन बॉन्ड पसंद है!” लड़के ने उत्साह से कहा। 

इस तरह बातचीत शुरू हुई। लड़के का नाम प्रेम था। वह भी गाँव जा रहा था—अपने दादाजी के पास। दोनों ने पाया कि उनके गाँव एक ही थे। 

“तो हम पड़ोसी हुए!” प्रेम ने हँसते हुए कहा। 

सरिता को उसकी बातों में एक सच्चाई लगी। वह आमतौर पर शर्मीली थी, लेकिन प्रेम के साथ बातें करने में उसे अजीब सी आसानी महसूस हो रही थी। यह धीरे धीरे love story school का pyar की पटकथा लिख जा रही थी। 

गाँव पहुँचने के बाद  सरिता गाँव की रंगीन यादों में खो गयी, उसने पाया कि प्रेम का घर उसकी नानी के घर से सिर्फ़ दस मिनट की दूरी पर था। अगले दिन सुबह, जब वह बरामदे में बैठी चाय पी रही थी, तो प्रेम साइकिल पर आता दिखा। 

“चलो, गाँव घूमते हैं!” उसने कहा। 

सरिता ने हिचकिचाते हुए हाँ कह दी। वे नदी किनारे गए, जहाँ बच्चे खेल रहे थे। प्रेम ने पत्थर उठाया और पानी पर छलाँग लगवाने लगा। 

“तुम भी करो!” उसने सरिता को चुनौती दी। 

सरिता ने कोशिश की, लेकिन पत्थर तुरंत डूब गया। दोनों हँस पड़े। 

धीरे-धीरे, वे रोज़ मिलने लगे। कभी खेतों में भागते, कभी पेड़ों के नीचे बैठकर कहानियाँ सुनाते। प्रेम को गाना गाने का शौक़ था। एक शाम, जब वे आम के पेड़ के नीचे बैठे थे, प्रेम ने अपना गिटार निकाला और गाना शुरू किया: 

“तुम्हें देखा तो ये ख़याल आया, 

ज़िंदगी धूप तुम ग़म की छाँव…” 

सरिता की आँखें नम हो गईं। 

“क्या हुआ?” प्रेम ने पूछा। 

“कुछ नहीं… बस तुम बहुत अच्छा गाते हो,” सरिता ने मुस्कुराते हुए कहा। 

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उस रात, सरिता को नींद नहीं आई। उसके दिल में कुछ अजीब सी घुटन थी। क्या वह प्रेम को पसंद करने लगी थी? 

अगले कुछ दिनों में, सरिता ने महसूस किया कि वह प्रेम के बिना रह नहीं सकती। एक शाम, जब वे दोनों खेत की मेड़ पर बैठे थे, प्रेम ने अचानक उसका हाथ थाम लिया। 

“सरिता… मैं तुमसे प्यार करता हूँ,” उसने धीरे से कहा। 

सरिता का दिल धड़कने लगा। उसने कुछ नहीं कहा, बस हाँ में सिर हिला दिया। 

प्रेम ने उसे गले लगा लिया। सरिता ने पहली बार महसूस किया कि प्यार कितना ख़ूबसूरत हो सकता है। 

छुट्टियाँ ख़त्म होने को थीं। सरिता और प्रेम दोनों शहर लौटने वाले थे। लेकिन एक दिन प्रेम ने ख़बर दी— 

“मेरे पापा का ट्रांसफर हो गया है। हमें दिल्ली शिफ्ट होना पड़ेगा।” 

सरिता का दिल बैठ गया। “पर… हम एक-दूसरे से दूर हो जाएँगे,” उसकी आवाज़ काँप गई। 

“हम फोन पर बात करेंगे, मैसेज करेंगे। दूरियाँ हमें अलग नहीं कर पाएँगी,” प्रेम ने उसे आश्वासन दिया। 

लेकिन ज़िंदगी इतनी आसान नहीं थी। 

दिल्ली जाने के बाद, प्रेम व्यस्त हो गया। नई जगह, नए दोस्त, और पढ़ाई का प्रेशर। धीरे-धीरे उसके मैसेज कम होते गए। सरिता उदास हो गई। वह रोज़ उसका इंतज़ार करती, पर जवाब नहीं आता। 

एक दिन उसने हिम्मत करके फोन किया। “प्रेम, क्या हुआ? तुम मुझसे बात क्यों नहीं करते?” 

“माफ़ करना, सरिता… मैं बहुत बिजी हो गया था,” प्रेम ने जवाब दिया। 

“पर तुमने वादा किया था ना कि हम हमेशा साथ रहेंगे?” सरिता की आवाज़ में दर्द था। 

प्रेम चुप रहा। फिर बोला, “शायद… हम अलग रास्तों पर चल पड़े हैं।” 

सरिता ने फोन काट दिया। उसकी आँखों से आँसू बह निकले। 

समय बीतता गया। सरिता ने खुद को संभाला। उसने पढ़ाई पर ध्यान दिया और कॉलेज में एडमिशन ले लिया। एक दिन, सोशल मीडिया पर उसे प्रेम का मैसेज आया: 

तुम कैसी हो? मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है।

सरिता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया: मैं ठीक हूँ। ज़िंदगी आगे बढ़ रही है।

प्रेम ने लिखा: “मैंने एक गलती की थी। क्या हम फिर से दोस्त बन सकते हैं?” 

सरिता ने सोचा और टाइप किया: “हाँ, लेकिन अब सिर्फ़ दोस्त। क्योंकि मैंने अपने आप को नई उम्मीदों के साथ आगे बढ़ाना सीख लिया है।” 

प्रेम ने हाँ कहा।

और इस तरह, इश्क़ की कशमकश उनकी कहानी एक नए अध्याय में बदल गई। सरिता और प्रेम का मिलन नहीं हो  सका उनकी love story अधूरी रह गयी इस उम्मीद के साथ कि फिर मिलेंगे।

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कहानी पढ़ने के लिए “धन्यवाद”