Sale of minor property: बालिग होने पर बेटा दोबारा property बेच सकता है या नहीं।जानें सुप्रीम कोर्ट का फैसला।

Hemraj Maurya

जमीन के मामले में आए दिन कोई न कोई प्रकरण आता रहता है। कही भूमाफिया के कब्जे का मामला , कही धोखे से वैनामा कराने का मामला , कही अवैध कब्जे का मामला, कही भाई बहन में जमीन विवाद का मामला, कही उत्तराधिकार का मामला। इसलिए जमीन मामले में धोखा धडी से बचने के लिए सभी नागरिकों को सावधान रहना और नियमों की जानकारी रखनी चाहिए। जिससे Sale of minor property में धोखाधड़ी का शिकार न हो पायें।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिगों की संपत्ति की बिक्री से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में अहम फैसला सुनाया है। यह फैसला Hindu Minority and Guardianship Act, 1956 के तहत प्राकृतिक अभिभावक (Natural Guardian) द्वारा नाबालिग की अचल संपत्ति (Immovable Property) को बेचे जाने पर नाबालिग के अधिकारों को स्पष्ट करता है।

Sale of minor property के मामले सुप्रीम कोर्ट फैसला! अगर पिता ने कोर्ट की अनुमति के बिना नाबालिग बेटे की प्रॉपर्टी बेची है, तो बेटा बालिग होने पर क्या कर सकता है? जानिए क्या उसे मुकदमा दायर करना होगा या वह सीधे प्रॉपर्टी दोबारा बेच सकता है? Hindu Minority and Guardianship Act, 1956 की धारा 8 के प्रावधान और नाबालिग के अधिकार समझें।

Sale of minor property क्या है पूरा मामला?

Sale of minor property मामला उस स्थिति से संबंधित था जब किसी नाबालिग के प्राकृतिक अभिभावक (जैसे पिता या माता) ने अदालत की पूर्व अनुमति के बिना उसकी अचल संपत्ति बेच दी थी। Sale of minor property के बाद  जब बेटा बालिग हो गया, तो उसने उसी संपत्ति को किसी दूसरे व्यक्ति को बेच दिया। इस पर विवाद खड़ा हो गया कि क्या बालिग होने के बाद बेटे को पुरानी बिक्री को रद्द करने के लिए पहले अदालत में औपचारिक मुकदमा (Formal Lawsuit) दायर करना ज़रूरी था या नहीं ।

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  • Sale of minor property ka पूरा विवाद कर्नाटक के दावणगेरे में दो जमीनों (प्लॉट नंबर 56 और 57) से जुड़ा था।
  • पिता ने 1971 में रुद्रप्पा नाम के एक व्यक्ति ने अपने तीन नाबालिग बेटों के नाम पर ये प्लॉट खरीदे। बाद में, बेटों के नाबालिग रहते हुए ही रुद्रप्पा ने जिला अदालत से कोई अनुमति लिए बिना, दोनों प्लॉट तीसरे पक्ष को बेच दिए।
  • जब तीनों बेटे बालिग हुए, तो उन्होंने अपने पिता द्वारा की गई बिक्री को न मानते हुए, 1989 में वही दोनों प्लॉट के.एस. शिवप्पा को बेच दिए।
  • इस बीच, पिता से जमीन खरीदने वाले पक्ष ने भी प्लॉट 57 नीलाम्मा को बेच दिया। जब शिवप्पा ने दोनों प्लॉट पर घर बनाया, तो नीलाम्मा ने उन पर मुकदमा कर दिया।
  • ट्रायल कोर्ट ने माना कि पिता (रुद्रप्पा) द्वारा की गई बिक्री अमान्य थी, क्योंकि कोई अनुमति नहीं ली गई थी। बेटों द्वारा बालिग होने पर उसी जमीन को शिवप्पा को बेचना, यह ‘स्पष्ट आचरण’ था कि उन्होंने अपने पिता के सौदे को अस्वीकार कर दिया है।

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Sale of minor property मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने CIVIL APPEAL NO. 11342 OF 2013 , K. S. SHIVAPPA v SMT. K. NEELAMMA  के अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि:

  • बिक्री ‘शून्यकरणीय’ (Voidable) है, ‘शून्य’ (Void) नहीं:
  •  Hindu Minority and Guardianship Act, 1956 की धारा 8 के अनुसार, किसी प्राकृतिक अभिभावक द्वारा नाबालिग की अचल संपत्ति को अदालत की पूर्व अनुमति के बिना बेचना शून्य नहीं (Not Void) बल्कि शून्यकरणीय (Voidable) होता है। इसका मतलब है कि नाबालिग के पास बालिग होने पर इस बिक्री को रद्द करने का अधिकार होता है।
  • मुकदमा दायर करना ज़रूरी नहीं:
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नाबालिग को बालिग होने पर अपने अभिभावक द्वारा की गई अनधिकृत बिक्री को रद्द करने के लिए हमेशा औपचारिक मुकदमा दायर करने की ज़रूरत नहीं है।
  • आचरण से भी अस्वीकृति संभव:
  •  नाबालिग बालिग होने के बाद अपने स्पष्ट और निर्विवाद आचरण (Unequivocal Conduct) से भी इस लेन-देन को अस्वीकृत (Repudiate) कर सकता है।
  •  उदाहरण के लिए: यदि वह स्वयं उसी संपत्ति को किसी अन्य व्यक्ति को बेच देता है या हस्तांतरित (Transfer) कर देता है, तो यह माना जाएगा कि उसने अपने पिता द्वारा की गई पुरानी बिक्री को रद्द कर दिया है।

K. S. Shivappa v SMT. K. Neelamma केस में सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय

K. S. Shivappa v SMT. K. Neelamma मामले में के.एस. शिवप्पा Sale of minor property के पूर्व फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून यह नहीं कहता कि ‘शून्यकरणीय’ सौदे को कैसे अस्वीकृत किया जाए। इसलिए, एक नाबालिग बालिग होने पर या तो मुकदमा दायर करके या अपने “स्पष्ट और असंदिग्ध आचरण द्वारा” (जैसे कि उसी संपत्ति को किसी और को बेचकर) भी पुराने सौदे को रद्द कर सकता है। बेटों का शिवप्पा को जमीन बेचना यह साबित करने के लिए पर्याप्त था कि उन्होंने अपने पिता के अवैध सौदे को खारिज कर दिया है।

फैसले का महत्व और मुख्य बिंदु

यह फैसला नाबालिगों के अधिकारों की रक्षा करता है और उनके लिए कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाता है:

  • नाबालिग का अधिकार है कि बालिग होने के बाद, नाबालिग पुरानी बिक्री को अस्वीकृत करके अपने संपत्ति के अधिकार जता सकता है।
  • मुकदमे की लंबी प्रक्रिया से बचने का विकल्प मिलता है। आचरण के माध्यम से अस्वीकृति पर्याप्त मानी जाएगी।
  • कानूनी आधार है कि Hindu Minority and Guardianship Act, 1956 की धारा 8 के तहत यह शून्यकरणीय लेनदेन को समय-सीमा के भीतर रद्द करने का अधिकार देता है।
  • यह फैसला उन खरीदारों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो नाबालिग की संपत्ति खरीद रहे हैं। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राकृतिक अभिभावक ने अदालत की पूर्व अनुमति ली है, अन्यथा भविष्य में यह बिक्री रद्द हो सकती है।

संक्षेप में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बेटा बालिग होने पर अपने पिता द्वारा बेची गई प्रॉपर्टी को दोबारा बेच सकता है, और उसका यह कदम ही पुरानी अनधिकृत बिक्री को रद्द करने का स्पष्ट संकेत माना जाएगा।

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