बैताल पच्चीसी हिंदी कहानियां
विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी–
विक्रम-बैताल पच्चीसी:जीवन मे कहानियों का विशेष महत्तव होता है क्योकि इन कहानियों के माध्यम से हमे बहुत कुछ सीखने को मिलता है| कहानियों से मनोरंजन भी होता है। तो पढ़िए इस रोचक और निडर कहानी को……
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम के एक राजा थे। उसके चार रानियाँ थीं। उनके छ: लड़के थे जो सब-के-सब बड़े ही चतुर और बलवान थे। संयोग से एक दिन राजा की मृत्यु हो गई और उनकी जगह उनका बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठा। उसने कुछ दिन राज किया, लेकिन छोटे भाई विक्रम ने उसे मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा। उसका राज्य दिनोंदिन बढ़ता गया और वह सारे जम्बूद्वीप का राजा बन बैठा। (विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
एक दिन उसके मन में आया कि उसे घूमकर सैर करनी चाहिए और जिन देशों के नाम उसने सुने हैं, उन्हें देखना चाहिए। सो वह गद्दी अपने छोटे भाई भर्तृहरि को सौंपकर, योगी बन कर, राज्य से निकल पड़ा। उस नगर में एक ब्राह्मण तपस्या करता था। एक दिन देवता ने प्रसन्न होकर उसे एक फल दिया और कहा कि इसे जो भी खायेगा, वह अमर हो जायेगा।
पढ़िये विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी
ब्राह्मण ने वह फल लाकर अपनी पत्नी को दिया और देवता की बात भी बता दी। ब्राह्मणी बोली, “हम अमर होकर क्या करेंगे? हमेशा भीख माँगते रहेंगें। इससे तो मरना ही अच्छा है। तुम इस फल को ले जाकर राजा को दे आओ और बदले में कुछ धन ले आओ।” यह सुनकर ब्राह्मण फल लेकर राजा भर्तृहरि के पास गया और सारा हाल कह सुनाया। भर्तृहरि ने फल ले लिया और ब्राह्मण को एक लाख रुपये देकर विदा कर दिया।
भर्तृहरि अपनी एक रानी को बहुत चाहता था। उसने महल में जाकर वह फल उसी को दे दिया। रानी की मित्रता शहर-कोतवाल से थी। उसने वह फल कोतवाल को दे दिया। कोतवाल एक वैश्या के पास जाया करता था। वह उस फल को उस वैश्या को दे आया। वैश्या ने सोचा कि यह फल तो राजा को खाना चाहिए। (विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
वह उसे लेकर राजा भर्तृहरि के पास गई और उसे दे दिया। भर्तृहरि ने उसे बहुत-सा धन दिया; लेकिन जब उसने फल को अच्छी तरह से देखा तो पहचान लिया। उसे बड़ी चोट लगी, पर उसने किसी से कुछ कहा नहीं। उसने महल में जाकर रानी से पूछा कि तुमने उस फल का क्या किया। रानी ने कहा, “मैंने उसे खा लिया।” राजा ने वह फल निकालकर दिखा दिया।
रानी घबरा गयी और उसने सारी बात सच-सच कह दी। भर्तृहरि ने पता लगाया तो उसे पूरी बात ठीक-ठीक मालूम हो गयी। वह बहुत दु:खी हुआ। उसने सोचा, यह दुनिया माया-जाल है। इसमें अपना कोई नहीं। वह फल लेकर बाहर आया और उसे धुलवाकर स्वयं खा लिया। फिर राजपाट छोड, योगी का भेष बनाकर, जंगल में तपस्या करने चला गया।(विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
भर्तृहरि के जंगल में चले जाने से विक्रम की गद्दी सूनी हो गयी। जब राजा इन्द्र को यह समाचार मिला तो उन्होंने एक देव को धारा नगरी की रखवाली के लिए भेज दिया। वह रात-दिन वहीं रहने लगा। भर्तृहरि के राजपाट छोड़कर वन में चले जाने की बात विक्रम को मालूम हुई तो वह लौटकर अपने देश में आया। आधी रात का समय था। जब वह नगर में घुसने लगा तो देव ने उसे रोका।
राजा ने कहा, “मैं विक्रम हूँ। यह मेरा राज है। तुम रोकने वाले कौन होते होते?” देव बोला, “मुझे राजा इन्द्र ने इस नगर की चौकसी के लिए भेजा है। तुम सच्चे राजा विक्रम हो तो आओ, पहले मुझसे लड़ो।” दोनों में लड़ाई हुई। राजा ने ज़रा-सी देर में देव को पछाड़ दिया। तब देव बोला, “हे राजन्! तुमने मुझे हरा दिया। मैं तुम्हें जीवन-दान देता हूँ।”
इसके बाद देव ने कहा, “राजन्, एक नगर और एक नक्षत्र में तुम तीन आदमी पैदा हुए थे। तुमने राजा के घर में जन्म लिया, दूसरे ने तेली के और तीसरे ने कुम्हार के। तुम यहाँ का राज करते हो, तेली पाताल का राज करता था। कुम्हार ने योग साधकर तेली को मारकर शम्शान में पिशाच बनाकर पेड़ से लटका दिया है। अब वह तुम्हें मारने की फिराक में है। उससे सावधान रहना।”
यह कहकर देव वहां से चला गया और राजा अपने महल में आ गया। राजा को वापस आया देख सबको बड़ी खुशी हुई। नगर में आनन्द मनाया गया। राजा फिर से राज करने लगा।
एक दिन की बात है कि शान्तिशील नाम का एक योगी राजा के पास दरबार में आया और उसे एक फल देकर चला गया। राजा को आशंका हुई कि देव ने जिस आदमी को बताया था, कहीं यह वही तो नहीं है! यह सोच उसने फल नहीं खाया, फल भण्डारी को दे दिया। इस तरह योगी आता, राजा को एक फल देता और चला जाता। (विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
एक दिन राजा अपना अस्तबल को देखने गया वह योगी वहां भी पहुँच गया और राजा के हाथ में एक फल दे दिया। राजा ने वह फल उछाला तो वह हाथ से छूटकर जमीन पर गिर गया। एक बन्दर ने झपटकर उस फल को उठा लिया और तोड़ डाला। उसमें से एक हीरा निकला, उस हीरे की चमक से सबकी आँखें चौंधिया गयीं। (विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
राजा को बड़ा अआश्चर्य हुआ। उसने योगी से पूछा, “तुम यह हीरा मुझे रोज़ क्यों देते हो ?”
योगी ने जवाब दिया, “महाराज! राजा, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य और बेटी, इन सबके घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।”
राजा ने भण्डारी को बुलाकर योगी द्वारा पहले के दिए हुए सभी फल मँगवाये। फल तुड़वाने पर सभी से एक-एक हीरा निकला। इतने हीरे देखकर राजा को आश्चर्यजनित हर्ष हुआ। राजा ने जौहरी को बुलवाकर उनका मूल्य पूछा। जौहरी बोला, “महाराज, ये हीरे इतने कीमती हैं कि इनका मूल्य नहीं आँका जा सकता। एक फिर एक राज्य के बराबर है।”
यह सुनकर राजा योगी का हाथ पकड़कर गद्दी पर ले गया। बोला, “योगीराज, आप हमें इसका राज बताओ। राज की बातें दूसरों के सामने नहीं कही जातीं।” (विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
राजा उसे अकेले में ले गया। वहाँ जाकर योगी ने कहा, “महाराज, यह बात मै आपको यहाँ नहीं बता सकता। यह जानने के आपको हमरे निवास स्थान पर गोदावरी नदी के किनारे शमसान में आना होगा। आप एक दिन रात को हथियार बाँधकर अकेले मेरे पास आ जाना।
राजा योगी के पास जाता है और देखता है कि योगी लाशों के बीच बैठा मंत्र सिद्ध कर रहा है। राजा निडर साहसी था वह लाशों से नहीं डरा। योगी राजा को बताता है मैं एक मंत्र सिद्ध कर रहा हूँ। उसके सिद्ध हो जाने पर मेरा मनोरथ पूरा हो जायेगा। तुम एक रात मेरे पास रह सकते हो आपके एक रत रहने से मेरा मंत्र सिद्ध हो जायेगा। (विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
राजा ने कहा “ठीक है मै रुक सकता हूँ।” योगी ने राजा को अपने पास बिठा लिया। थोड़ी देर बैठकर राजा ने पूछा, “महाराज, मेरे लिए क्या आज्ञा है?”(विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
योगी ने कहा, “राजन्, “यहाँ से दक्षिण दिशा में दो कोस की दूरी पर मसान में एक पेड़ पर एक मुर्दा उलटा लटका है। उसे मेरे पास ले आओ, तब तक मैं यहाँ पूजा करता हूँ।”
यह सुनकर राजा वहाँ से चल दिया। बड़ी भयंकर रात थी। चारों ओर अँधेरा फैला था। पानी बरस रहा था। भूत-प्रेत शोर मचा रहे थे। साँप आ-आकर पैरों में लिपटते थे। लेकिन राजा हिम्मत से आगे बढ़ता गया। जब वह मसान में पहुँचा तो देखता क्या है कि शेर दहाड़ रहे हैं, हाथी चिंघाड़ रहे हैं, भूत-प्रेत आदमियों को मार रहे हैं।(विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
राजा बेधड़क चलता गया और उस पेड़ के पास पहुँच गया। राजा ने सोचा, हो-न-हो, यह वही योगी है, जिसकी बात देव ने बतायी थी। पेड़ पर रस्सी से बँधा मुर्दा उलटा लटक रहा था। राजा पेड़ पर चढ़ गया और तलवार से रस्सी काट दी। मुर्दा नीचे किर पड़ा और दहाड़ मार-मार कर रोने लगा।(विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
राजा ने पेड़ के नीचे आकर पूछा, “तू कौन है?” राजा का इतना कहना था कि वह मुर्दा खिलखिकर हँस पड़ा। राजा को बड़ा अचरज हुआ। तभी वह मुर्दा फिर पेड़ पर जा लटका। राजा फिर चढ़कर ऊपर गया मुर्दे का बगल में दबाकर नीचे ले आया और बोला, “बता, तू कौन है?” (विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
मुर्दा चुप रहा। तब राजा ने उसे अपनी पीठ पर लादकर योगी के पास लेकर चला। रास्ते में वह मुर्दा बोला, “मैं बेताल हूँ। तू कौन है और मुझे कहाँ ले जा रहा है?” राजा ने कहा, “मै राजा विक्रमादित्य हूँ। तुझे शमशान में योगी के पास ले जा रहा हूँ।”
बेताल बोला, “मैं एक शर्त पर चलूँगा। अगर तू रास्ते में बोलेगा तो मैं लौटकर पेड़ पर लटक जाऊंगा।” (विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)
राजा ने उसकी बात मान ली। फिर बेताल बोला, “ पण्डित, चतुर और ज्ञानी, इनके दिन अच्छी-अच्छी बातों में बीतते हैं, जबकि मूर्खों के दिन कलह और नींद में बीतते है। बेताल ने कहा काली अँधेरी रात है रास्ता कठिन है अच्छा होगा हम बात कहे और तू सुन । मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूँ। ले, सुन।” (विक्रम-बैताल पच्चीसी प्रारिम्भक कहानी)