Asali Var Kaun? बेताल पच्चीसी पाँचवीं कहानी| असली वर कौन? Vikram Betal story 5

Hemraj Maurya

बेताल पच्चीसी पाँचवीं कहानी Asali Var Kaun? बहुत समय पहले, उज्जयिनी के पास एक ग्राम में हरिस्वामी नाम का एक ईमानदार और धर्मपरायण ब्राह्मण रहता था। वह राजा पुष्यसेन का प्रिय सेवक और दूत भी था। उसके दो संतानें थीं — बड़ा पुत्र देवस्वामी और एक पुत्री, जिसका नाम सोमप्रभा था। सोमप्रभा बहुत सुन्दर और विनम्र थी; उसका रूप-रंग और सुभाव सब जगह प्रशंसा का विषय था।

Asali Var Kaun? बेताल पच्चीसी पाँचवीं कहानी

जब सोमप्रभा की उमर विवाह लायक हुई, तो उसने अपने पिता से कहा, “पिताजी, मैं उसी से विवाह करूंगी जो साहसी हो, या जो महान विद्या-ज्ञान में निपुण हो, या जिसके पास असाधारण शक्तियाँ हों। अन्य किसी से मेरा विवाह नहीं होगा।” इस पर हरिस्वामी ने अपनी पुत्री की मर्जी का सम्मान किया और उसके लिए ऐसा वर खोजने की सच्ची कोशिश शुरू कर दी।

कुछ समय बाद राजा ने हरिस्वामी को दक्षिण देश में शांति-संधि करवाने का दूत बना कर भेजा। हरिस्वामी ने अपना काम पूरा किया और वापसी के समय एक ज्ञानी ब्राह्मण उससे मिलने आया। उसने हरिस्वामी से कहा कि उसने उसकी कन्या सोमप्रभा के रूप-लावण्य की काफ़ी प्रशंसा सुनी है और वह उससे विवाह करना चाहता है। पर हरिस्वामी ने कहा कि उसकी पुत्री केवल उन्हीं में से किसी एक से विवाह करेगी — वीर, ज्ञानी या अलौकिक विद्याओं का जानकार।

तब उस ब्राह्मण ने बताया कि वह अद्भुत विद्या जानता है और उसने अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए तुरन्त एक आकाशगामी रथ बनाकर हरिस्वामी को आकाश से संसार दिखाया। यह देखकर हरिस्वामी प्रभावित हुआ और उसने उस ब्राह्मण से अपनी कन्या का विवाह करने का वचन दे दिया। विवाह की तिथि सातवें दिन रखी गयी।

इसी बीच उज्जयिनी में दूसरा ब्राह्मण आया — वह वीर था। उसने देवस्वामी (हरिस्वामी का बड़ा पुत्र) से सोमप्रभा से विवाह की इच्छा व्यक्त की। देवस्वामी ने उस वीर के साहस और शौर्य का परीक्षण किया और जब वह आश्वस्त हुआ, तो उसने भी अपनी बहन से विवाह की बात स्वीकार कर ली और विवाह की तारीख वही सातवाँ दिन रखी।

तथा एक तीसरा व्यक्ति — जो स्वयं को ज्ञानी कहता था — भी सोमप्रभा के घर आया और उसने भी अपने ज्ञान का प्रदर्शन करके कहा कि वह ही योग्य पति है। उसकी माँ ने भी प्रभावित होकर उसने सातवें दिन विवाह करने का वचन दे दिया।

यही सब बातें एक ही घर में अलग-अलग लोगों ने तय कर दीं—तीनों अलग-अलग पुरुषों ने सातवें दिन के लिए विवाह तय कर लिया। पर अगले दिन जब हरिस्वामी घर लौटकर सबको यह बताने गया, तो उसे पता चला कि तीनों ने अलग-अलग तरह से और अलग-अलग कारणों से विवाह जीत लेने का दावा कर लिया है। हरिस्वामी चिंतित हो उठा कि आखिर एक ही कन्या का विवाह तीनों से कैसे होगा?

आखिरकार तय दिन आया। ज्ञानी, वीर और अलौकिक विद्या-ज्ञानी—तीनों एक साथ हरिस्वामी के घर पहुँचे। पर उसी समय विकट घटना घटी — सोमप्रभा अचानक गायब हो गयी। सबने घर-आंगन खंगाला, लेकिन उसका कोई पता नहीं मिला। तब सबने उस ज्ञानी से पूछा कि वह कहाँ गयी है। ज्ञानी ने अपने ज्ञान से पता लगाया और बताया — “हे ब्राह्मण, तुम्हारी कन्या को धूमशिख नामक एक राक्षस उठाकर विंध्याचल के वन में ले गया है।”

यह सुनकर हरिस्वामी और परिवार दहशत में आ गए। तभी वह अलौकिक विद्या-ज्ञानी बोला, “चिन्ता मत कीजिए। मैं अभी ऐसा यान बना दूँगा जिससे हम वहाँ तुरन्त पहुँच सकें।” और उसने अपनी विद्या से एक आकाशगामी रथ बना लिया। उस रथ पर हरिस्वामी, ज्ञानी और वीर सब सवार हो लिये और वे उस स्थान पर पहुँच गये जहाँ राक्षस का वास था। राक्षस ने जब देखा कि लोग आये हैं तो गर्जना कर उठा और बाहर आकर युद्ध करने लगा।

तब वीर ने राक्षस का सामना किया। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ — जितना वीर अपने अस्त्र-शस्त्रों से और शौर्य से लड़ता गया, उतना ही राक्षस भी डरावना और शक्तिशाली था। पर थोड़े समय के भीतर ही वीर ने एक शक्तिशाली बाण चलाकर राक्षस का सिर अलग कर दिया और उसे मार गिराया। राक्षस मरा तो सबने आश्वस्त होकर सोमप्रभा को वापस उठाया और अलौकिक रथ से गांव लौट आये।

गाँव लौटकर विवाह का समय हुआ और तभी तीनों में बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ। ज्ञानी बोला, “यदि मैंने अपने ज्ञान से नहीं जाना होता कि वह कहाँ ले जाई गयी है, तो उसे ढूँढकर वापस लाया नहीं जा सकता था — इसलिए वह मेरी ही पत्नी बने।” अलौकिक विद्या-ज्ञानी बोला, “यदि मैंने आकाशगामी रथ न बनाया होता तो उस स्थान पर पहुँच पाना सम्भव नहीं था — इसलिए विवाह मेरा अधिकार है।” और वीर बोला, “यदि मैंने अपनी वीरता से उस राक्षस का संहार न किया होता तो तुम सबके प्रयत्नों से भी वह कन्या लौटती नहीं—इसलिए मैं ही उसका पति बनूँ।”

तीनों के तर्क सुनकर हरिस्वामी बिलकुल स्तब्ध हो गया। उसने समझ नहीं पाया कि किसे अपनी पुत्री सौंपे। वह सिर पकड़कर बैठ गया। तब बेताल ने विक्रम से पूछा — “राजन्! अब तुम बताओ, इस कन्या का पति कौन होना चाहिए — ज्ञानी, अलौकिक विद्या-ज्ञानी, या वीर? यदि तुम सही उत्तर नहीं दोगे तो….” (कथा की शर्त के अनुसार बेताल ने विक्रम पर एक कठिन परीक्षण रखा था।)

विक्रम ने सोचकर उत्तर दिया — “बेताल, वह कन्या वीर को ही मिलनी चाहिए, क्योंकि वही राक्षस से लड़कर उसे वापस लाया। ज्ञानी और अलौकिक विद्या-ज्ञानी तो केवल रास्ते दिखाने और साधन देने में मदद कर सके; पर जो आख़िरकार बचे हुए कार्य को अंजाम दे कर कन्या को सुरक्षित करता है, वही असल में उसका अधिकारी है।”

बेताल ने मुस्कुराकर कहा, “तुमने सही कहा, राजन्।” फिर उसने अपनी शर्तों के अनुसार मौन तोड़ा और विक्रम की परीक्षा पूरी हुई। बेताल राजा के कंधे से उतरकर फिर से उसी शिशपा-वृक्ष की ओर उड़ गया और  राजा विक्रमादित्य पुनः उसे लेने के लिए चल दिए।

कहानी यही सिखाती है — साहस और कर्म का महत्व सबसे बड़ा है; जो वास्तविक कठिनाई झेलकर फल प्राप्त करता है, वही असल अधिकारी बनता है।

असली वर कौन? बेताल पच्चीसी : उज्जैन में महाबल नाम का एक राजा रहता था। उसके यहाँ हरिदास नाम का एक दूत था।  हरिदास के महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर सुयोग्य कन्या थी।

महादेवी जब  विवाह के योग्य हो गई तो हरिदास को बहुत चिन्ता होने लगी। इसी बीच राजा ने उसे एक दूसरे राजा के पास भेजा।

कई दिन का सफर तय करके  हरिदास वहाँ पहुँचा। राजा ने उसे बड़ी अच्छी तरह से अपने पास रखा।

एक दिन एक ब्राह्मण हरिदास के पास आया और कहा  “तुम अपनी लड़की मुझे दे दो।”

हरिदास ने कहाँ, “मैं अपनी लड़की उसे दूँगा, जो सर्वगुण संपन्न होगा।”

तब ब्राह्मण ने कहा, “हमारे पास एक ऐसा रथ है, जिस पर बैठकर जहाँ चाहो क्षणभर में पहुँच जाओगे।”

हरिदास बोला, “ठीक है। सबेरे उसे ले आना।”

असली वर कौन?

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वह ब्राम्हण अगले दिन रथ लेकर आया और दोनों रथ पर बैठकर उज्जैन आ पहुँचे। दैवयोग से उससे पहले हरिदास का लड़का अपनी बहन को किसी दूसरे को और हरिदास की स्त्री अपनी लड़की को किसी तीसरे को देने का वादा कर चुकी थी।

इस तरह तीन वर इकट्ठे हो गये। हरिदास सोचने लगा कि कन्या एक है, और युवक तीन हैं। क्या करे किसके साथ विवाह करे!  असली वर किसको चुने।

ब्राम्हण यह सोच ही रहा था तभी  एक राक्षस आया और उस लड़की को उठाकर विंध्याचल पहाड़ पर लेके चला  गया।

ब्राम्हण ने यह बात उन तीनो को बताई   उन तीनों वरों में एक ज्ञानी था। उसने हरिदास को बताया कि कि एक राक्षस  एक लड़की को उड़ाकर ले  गया है और वह विंध्याचल पहाड़ पर है।

विक्रम बेताल पच्चीसी को पांचवी कहानी असली वर कौन
विक्रम बेताल पच्चीसी को पांचवी कहानी असली वर कौन

दूसरे ने कहा, “मेरे रथ पर बैठकर चलो। ज़रा सी देरी में वहाँ पहुँच जायेंगे।”

तीसरा बोला, “मैं शब्दवेधी तीर चलाना जानता हूँ। राक्षस को मार गिराऊँगा।”

वे सब रथ पर चढ़कर विंध्याचल पर्वत पर पहुँचे।  राक्षस के साथ उनका युद्ध हुआ। शब्दभेदी तीर चलने वाले वर ने राक्षस को मर गिराया और राक्षस को मारकर लड़की को बचा लिया ।

राजा बताओ असली वर कौन?

इतना कहकर बेताल बोला “हे राजन्! बताओ, वह लड़की उन तीनों में से किसको मिलनी चाहिए? असली वर कौन होना चाहिए।

राजा ने कहा, “जिसने राक्षस को मारा, उसकों मिलनी चाहिए, वही असली वर है  क्योंकि असली वीरता तो उसी ने दिखाई। बाकी दो ने तो मदद की।”

राजा का इतना कहना था कि बेताल राजा की पीठ से गगयाब हो गया और  फिर पेड़ पर जाकर  लटक गया  और राजा फिर पेड़ के पास गया उसे लेकर आया तो रास्ते में बेताल की फिर वही रास्ता कठिन है अँधेरी रात है  रास्ता काट जय इसलिए तुम्हे एक हुए कहानी सुनाता हूँ।  वेताल ने छठी कहानी सुनायी।

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