Shri Krishna Chalisa. श्री कृष्ण चालीसा
हिंदू मान्यताओं में, भगवान श्री कृष्ण (Bhagwan Shri Krishn )एक प्रिय व्यक्ति हैं जो अपनी बुद्धि, दयालुता और प्रेम के लिए जाने जाते हैं। कृष्ण चालीसा एक विशेष प्रार्थना है जिसमें चालीस छंद उन्हें समर्पित हैं।
Bhagwan Shri Krishn की पूजा हिंदू धर्म में विशेष फलदायी मानी जाती है। श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। और भगवान श्री कृष्ण ( GOD ShriKrishn) को पूर्णावतार भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने मृत्यु लोक के सभी चरणों को भोगा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जो कोई भी भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ से भगवान कृष्ण की पूजा करता है, उसे जीवन में सफलता, सुख और शांति की प्राप्ति होती है।
जिस तरह प्रत्येक धर्म में उसका एक धार्मिक ग्रंथ होता है, उसी प्रकार से हिंदू धर्म में गीता को विशेष दर्जा दिया गया है। गीता के रूप में भगवान श्री कृष्ण ने इंसान को जीवन को जीने की कला सिखाई है। साथ ही कर्म का महत्व समझाया। अगर आप भगवन श्रीकृष्ण की पूजा करते है और नियमित रूप से श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ करते, तो यह माना जाता है कि इससे व्यक्ति के जीवन के दुख और विपत्तियां समाप्त हो जाती है।
कृष्ण चालीसा प्रार्थना के प्रत्येक श्लोक ने हमें भगवन श्री कृष्ण की दयालुता और ज्ञान दिखाया गया है , जिससे हमें आध्यात्मिक ज्ञान मिला। आइए कृष्ण के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए श्री कृष्ण चालीसा का पथ करें।

॥ दोहा ॥
बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम। अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥ जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥ |
॥ चौपाई ॥
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन । जय वसुदेव देवकी नन्दन॥ जय यशुदा सुत नन्द दुलारे । जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥ जय नट-नागर नाग नथैया । कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥ पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो । आओ दीनन कष्ट निवारो॥ वंशी मधुर अधर धरी तेरी । होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥ आओ हरि पुनि माखन चाखो । आज लाज भारत की राखो॥ गोल कपोल, चिबुक अरुणारे । मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥ रंजित राजिव नयन विशाला । मोर मुकुट वैजयंती माला॥ कुण्डल श्रवण पीतपट आछे । कटि किंकणी काछन काछे॥ नील जलज सुन्दर तनु सोहे । छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥ मस्तक तिलक, अलक घुंघराले । आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥ करि पय पान, पुतनहि तारयो । अका बका कागासुर मारयो॥ मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला । भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥ सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।मसूर धार वारि वर्षाई॥ लगत-लगत ब्रज चहन बहायो । गोवर्धन नखधारि बचायो॥ लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई । मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥ दुष्ट कंस अति उधम मचायो । कोटि कमल जब फूल मंगायो॥ नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें । चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥ करि गोपिन संग रास विलासा । सबकी पूरण करी अभिलाषा॥ केतिक महा असुर संहारयो । कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥ मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।उग्रसेन कहं राज दिलाई॥ महि से मृतक छहों सुत लायो।मातु देवकी शोक मिटायो॥ भौमासुर मुर दैत्य संहारी । लाये षट दश सहसकुमारी॥ दै भिन्हीं तृण चीर सहारा । जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥ असुर बकासुर आदिक मारयो । भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥ दीन सुदामा के दुःख टारयो । तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥ प्रेम के साग विदुर घर मांगे । दुर्योधन के मेवा त्यागे॥ लखि प्रेम की महिमा भारी । ऐसे श्याम दीन हितकारी॥ भारत के पारथ रथ हांके । लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥ निज गीता के ज्ञान सुनाये । भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥ मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥ राना भेजा सांप पिटारी।शालिग्राम बने बनवारी॥ निज माया तुम विधिहिं दिखायो । उर ते संशय सकल मिटायो॥ तब शत निन्दा करी तत्काला । जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥ जबहिं द्रौपदी टेर लगाई । दीनानाथ लाज अब जाई॥ तुरतहिं वसन बने नन्दलाला । बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥ अस नाथ के नाथ कन्हैया । डूबत भंवर बचावत नैया॥ सुन्दरदास आस उर धारी।दयादृष्टि कीजै बनवारी॥ नाथ सकल मम कुमति निवारो । क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥ खोलो पट अब दर्शन दीजै । बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥ |
॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि। अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥ ज्यादा चालीसा पढ़े |